कांग्रेस की अंदरूनी खींचतान से आंखें मूंदे पूर्व मुख्यमंत्री हरीश रावत उत्तराखंड विधानसभा चुनाव ( Uttarakhand Assembly Elections ) में अपने पुराने तेवर दिखा रहे हैं, जिससे उत्तराखंड ( Uttarakhand ) में, खासतौर से तराई भाबर की 13 विधानसभा सीटों में, मुकाबले ने दिलचस्प रूप धारण कर लिया है। हरीश रावत अपनी पार्टी के भीतर जारी वर्चस्व की लड़ाई को सही ठहराते हुए कहते हैं कि राजनीति में आने वाले व्यक्ति के दिल में बड़ी महत्वकांक्षाओं का होना गलत नहीं है। प्रदेश की जनता जानना चाहती है कि क्या ऐसा कहकर वह अपना फेस सेव करने की कोशिश कर रहे हैं या कांग्रेस हाईकमान को यह दरशाना चाहते हैं कि उनकी खुद की महत्वकांक्षाओं का सम्मान किया जाए?
प्रदेश के राजनीतिक हलकों में यह चर्चा गर्म है कि हरक सिंह रावत की कांग्रेस वापसी से हरीश रावत कुछ खास खुश नहीं हैं। वह अभी भूले नहीं हैं कि कैसे 2016 में यही हरक सिंह रावत कांग्रेस में तोड़फोड़ के दोषी समझे गए थे। लेकिन चुनाव का वक्त है, तो हरीश रावत को कहना पड़ रहा है कि हरक सिंह रावत उनके छोटे भाई हैं और इस बार हरक कोई गड़बड़ नहीं करेंगे।
कांग्रेस भले ही हरीश रावत को उत्तराखंड के भावी मुख्यमंत्री के रूप में प्रोजेक्ट न कर ही हो, लेकिन फिर भी कोई और भरोसेमंद चेहरा न होने की वजह से पार्टी को उन्हें प्रदेश में अपनी कैंपेन कमेटी का प्रमुख बनाना पड़ा। सच तो यही है कि बूढ़े होने के बावजूद हरीश रावत आज भी उत्तराखंड में सबसे ज्यादा लोकप्रिय और सक्रिय कांग्रेस नेता हैं। उन्होंने खुद दावा किया है कि वह उत्तराखंड में अगली कांग्रेस सरकार की कमान संभालने के लिए तैयार हैं।
चुनावों से ठीक पहले बागियों को मनाने की कांग्रेस में लंबी परंपरा रही है औऱ हरीश रावत इस परंपरा का पालन किसी धार्मिक रीति की तरह कर रहे हैं। खासतौर से तराई-भाबर में वह कोई कोताही नहीं बरतना चाहते, जहां उनके और भाजपा नेता व मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी के बीच इस क्षेत्र की 13 विधानसभा सीटों में से ज्यादा से ज्यादा अपने दल को जिताने की होड़ लगी है। दोनों ही नेताओं की प्रतिष्ठा दांव पर लगी है। बयानबाजी हो रही है। धामी ने हरीश रावत को कांग्रेस के अंदरूनी सत्ता संघर्ष में बेचारा की संज्ञा दी, तो कांग्रेस नेता ने कहा कि धामी जैसे कम अनुभव के नेता को भाजपा ने मुख्यमंत्री इसलिए बनाया था, क्योंकि उसके पास अनुभवी विकल्प नहीं थे।
आपको बता दें कि हरीश रावत भाबर की लालकुआं सीट से भाग्य आजमा रहे हैं, तो धामी भी तराई-भाबर क्षेत्र से ही चुनाव मैदान में हैं। इस क्षेत्र में नैनीताल जिले की 4 औऱ ऊधमसिंह नगर की 9 विधानसभा सीटें हैं। दोनों महारथियों की प्रतिष्ठा यहां दांव पर है। देखना दिलचस्प होगा कि कौन यहां से विजयी होकर प्रदेश के मुख्यमंत्री पद पर अपना दावा पेश करता हैं।
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